झूठ बोलते है लोग शराब गम हल्का कर देती है,
मैंने देखा है अक्सर लोगो को नशे में रोते हुए।
ये इश्क़ भी शराब के जैसे है दोस्तों,
करे तो मर जाये न करें तो किधर जाये।
दिल खोलकर तू चाहत का इजहार करके देख,
नशा शराब से ज्यादा है इसमें तू प्यार करके देख।
तेरी तस्वीर में वो नशा है,
पानी में भिगो दें तो शराब बन जाती है।
घूँट घूँट पी लो,
तो दर्द-ए-दवा बन जाती है।
वो शहद का लुफ्त और साकी वो शराब किधर गई,
मैंने हाथों से पिलाई चाय और उन्हें नशे सी चढ़ गई।
खैर न पूछो खैरियत न पूछो,
चाय का शराबी हूँ मेरी हैसियत न पूछो।
रिवाज तेरे मयखाने का अजीब है सरकार,
पीना भी है शराब और होंश भी नही खोना है।
अभी कदम रखा ही था हमने मयखाने में की आवाज आई,
चला जा वापस क्यूंकि तुझे शराब की नहीं किसीके दीदार की जरुरत है।
मयखाने से पूछा आज इतना सन्नाटा क्यों है,
बोला साहब लहू का दौर है शराब कौन पीता है।
नशा हम किया करते है इलज़ाम शराब को दिया करते हैं,
कसूर शराब का नहीं उनका है,
जिनका चहेरा हम जाम मै तलाश किया करते है।
तुम्हारी आँखों की तौहीन है जरा सोंचो,
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है।
ये इश्क भी नशा-ए-शराब जैसा है यारो,
करें तो मर जाएँ और छोड़े तो किधर जाएँ।
बहुत शराब चढाता हुँ रोज,
तब जाकर तुम, कहीं उतरती हो।
कदम भला बहके कहाँ है मेरे शराब से,
ये तो बहके है करके इश्क़ एक गुलाब से।
तेरे होंठो में भी क्या खूब नशा है ऐ सनम,
लगता है तेरे जूठे पानी से ही शराब बनती है।
लाल आँखे और होंठ शबनमी,
पी के आये हो या खुद शराब हो।
उनके गुलाबी होठों की प्यास ओ तलब बढ़ रही हैं,
हम कभी पीते नहीं फिर भी उनकी यादें शराब सी चढ़ रही है।
जो नशा तेरी सूरत मे हैं,
वो नशा शराब में नही ये तो कल आज़मा लिया हमने।
अफ़ीमी आखें शर्बती गाल और शराबी लब,
खुदा ही जाने नशे में तुम हो या तुम में नशा।
प्यास अगर शराब की होतीतो ना आता तेरे मैखाने मे,
ये जो तेरी नज़रो का जाम है कम्बख्त कही और मिलता ही नही।
वो बर्फ की तरह मेरी शराब में घुल गयी,
मैं लबों से छूकर उसे तेज़ाब कर बैठा।
तमाम शराबें पी ली थी इस जहाँ की मगर,
उसकी आँखों में झाँका तो जाना आखिर नशा भी क्या चीज़ हैं।
ना जख्म भरे ना शराब सहारा हुए,
ना वो बापस लौटे,
ना मोहब्बत दोबारा हुए।
महंगी शराब दुनिया के हर कोने में मिल जाती,
बस माँ तेरे हाथों की चाय का स्वाद कहीं न मिला।
साकी को गिला है उसकी बिकती नहीं शराब,
और एक तेरी आंखें हैं कि होश में आने नहीं देती।
कभी सोचा ना था इतना बिखर जाऊँगी मैं,
शराब पियूँगी औऱ फिर नशे में घर जाऊँगी मैं।
शराब की जरूरत किसे है,
कम्बख़त तू उतरे तो नशा दूसरा करें!
ना जख्म भरे ना शराब सहारा हुए,
ना वो बापस लौटे ना मोहब्बत दोबारा हुए।
ये इश्क़ भी नशा-ए-शराब जैसा है यारो,
करें तो मर जाएं और छोड़े तो किधर जाएं।
आओ कभी शराब बनकर,
मुझे घुलना है तुममें पानी की तरह।
अपने होठों से मुझको चख तो जरा,
मैं भी शायद शराब हो जाऊँ।
तेरी आँखों से एक चीज लाजवाब पीता हूँ,
में गरीब जरुर हूँ मगर सबसे महँगी शराब पीता हूँ।
अपने होठों से मुझको चख तो जरा,
मैं भी शायद शराब हो जाऊँ।
अरे शराब तक जलती हैं हमसे,
कम्बख़्त जबसे हम मिले हैं,
मेहबूब ने हमारे जामसे तालुक्कात सारे तोड़ दिए हैं।
न पूछो कि शराब की लत कैसे लगी,
बस गमों के बोझ से शराब की बोतल हल्की लगी।
रिवाज तेरे मयखाने का अजीब है सरकार,
पीना भी है शराब और होंश भी नही खोना है।
कदम भला बहके कहाँ है शराब से,
ये तो बहके हैं करके इश्क़ एक गुलाब से।
मेरी तबाही का इलजाम अब शराब पर है,
मैं और करता भी क्या तुम पर आ रही थी बात।
यू तो तुझसे जुदा हो कर पानी तक तो गले से उतरता नही,
लेकिन अगर तुम शराब ले आये हो तो पिला दो।
कुछ नहीं बचा कहने को, हर बात हो गई,
आओ कहीं शराब पीएं, के रात हो गई।
साकी देख ज़माने ने कैसी तोहमत लगाई है,
आँखें उसकी नशीली हैं शराबी मुझे कहते हैं।
तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो,
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है।