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शेर 'ग़ालिब' का नहीं वही ये तस्लीम मगर,
ब-ख़ुदा तुम ही बता दो नहीं लगता इल्हाम।
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह,
कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझाएँगे क्या।
नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का,
मस्ती से हर निगह तिरे रुख़ पर बिखर गई।
तमाशा कि ऐ महव-ए-आईना-दारी,
तुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं।
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई,
इक शम्अ रह गई है सो वो भी ख़मोश है।
Mirza Ghalib 2 Lines Shayari In Hindi
ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब' ,
वाक़िआ सख़्त है और जान अज़ीज़।
दोनों जहान दे के वो समझे ये ख़ुश रहा,
याँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करें।
ढाँपा कफ़न ने दाग़-ए-उयूब-ए-बरहनगी,
मैं वर्ना हर लिबास में नंग-ए-वजूद था।
अहल-ए-बीनश को है तूफ़ान-ए-हवादिस मकतब,
लुत्मा-ए-मौज कम अज़ सैली-ए-उस्ताद नहीं।
है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त 'असद',
हम ने ये माना कि दिल्ली में रहें खावेंगे क्या।
Mirza Ghalib Shayari In Hindi 2 Lines On Life
हर इक मकान को है मकीं से शरफ़ 'असद',
मजनूँ जो मर गया है तो जंगल उदास है।
कौन है जो नहीं है हाजत-मंद,
किस की हाजत रवा करे कोई।
करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना,
तिरी तरह कोई तेग़-ए-निगह को आब तो दे।
ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है,
कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाए है मुझ से।
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद,
वर्ना बाक़ी है ताक़त-ए-परवाज़।
Mirza Ghalib Shayari In Hindi 2 lines
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और,
तन्हा गए क्यूँ अब रहो तन्हा कोई दिन और।
गर किया नासेह ने हम को क़ैद अच्छा यूँ सही,
ये जुनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छुट जावेंगे क्या।
आज हम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उन से,
कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं।
मसाल ये मिरी कोशिश की है कि मुर्ग़-ए-असीर,
करे क़फ़स में फ़राहम ख़स आशियाँ के लिए।
अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो,
आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही।
Mirza Ghalib 2 Lines Shayari In Hindi
आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब',
कोई दिन और भी जिए होते।
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था।
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे,
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे।
आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता,
तुझ पे खुल जावे कि इस को हसरत-ए-दीदार है।
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए,
मुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का।
Mirza Ghalib Shayari In Hindi 2 Lines On Life
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी,
अब किसी बात पर नहीं आती।
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।
आज हम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उन से,
कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं।
आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं,
उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या।
समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल,
कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है क्या कहिए।
कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब,
गालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ।
आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब',
कोई दिन और भी जिए होते।