Bachpan Shayari: नमस्कार दोस्तो, हमेशा की तरह आज फिर से हाजिर है एक नए पोस्ट के साथ जिसका टाइटल है बचपन शायरी। बचपन जिंदगी का एक हसीन पल है जिसे हर कोई भरपूर जीता है अपने अपने तरह से। जवानी मेे आने के बाद पता चलता है कि बचपन कितना प्यारा लगता है। हम उम्मीद करते है कि आज की पोस्ट आपको अच्छी लगेगी और आप इसे अपने दोस्तो के साथ जरूर शेयर करेंगे।
शरारतें करने का मन अभी भी करता है,
पता नहीं बचपना जिंदा है या इश्क अधुरा है।
बचपन के खिलोनो से छुपा लूं तुम्हे,
आंसू बहाऊं पैर पटकूँ और पा लूं तुम्हे।
आरज़ू बचपन से थी चाँद देखने की,
और फिर यूँ हुआ कि हम आप से टकरा गये।
मोहब्बत ओर मेरी कभी बनी नही साहब,
वो गुलामी चाहती थी और हम बचपन से आज़ाद।
मैं बचपन में ही रहती तो अच्छा था,
हज़ारों हसरतें बर्बाद की मैंने जवान होकर।
इस समझदारी से लाख गुना बेहतर था बचपन,
जहाँ हम खिलौनो से खेलते थे दिलो से नहीं।
हमको जाने का है मगर कोई बुलाती नही,
कितनी हसीन थी वो मोहोब्बत बचपन की,
मेरे न देखने पर सबसे रूठ जाती थी वो।
कितनी भूखी होती है गरीब की ज़िन्दगी,
गरीब के बच्चों के हिस्से का बचपन भी खा जाती है।
ज़ालिम आज भी आँसु निकलते है इन आँखो से,
पर अफ़सोस वो बचपन वाला माँ का पल्लू नहीं है।
खेलता तो हर कोई है आज भी फर्क सिर्फ इतना है कि,
बचपन मे खिलौनो से खेलते थे और अब दिल से खेलते है।
मै उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह,
वो मेरे साथ है बचपन की आदतों की तरह।
बिना खिलौनों के बचपन गुज़ार आए हैं,
हम अपने मन को बहुत पहले मार आए हैं।
बचपन में जहां चाहा हँस लेते थे जहां चाहा रो लेते थे,
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसुओ को तन्हाई।
हम गांव वालों से इतनी मोहब्बत ना करना,
हमारी मंगनी बचपन में ही हो जाती है।
काश के बचपन में ही मांग लेते तुजे हम,
हर चीज मिल जाती थी दो आँसू बहाने से।
बारिश का मौसम अक्सर यादें बरसाता है,
नम हो जाती हैं आँखे जब बचपन याद आता है।
ज़िन्दगी वज्द का फिर दे कोई मौक़ा मुझको
लौटा बचपन का फ़क़त एक खिलौना मुझको
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया।
एक टीका बचपन मे मोहब्बत की रोकथाम का भी लगवाना था,
सबसे ज्यादा मरीज़ तो इसी बीमारी के हैं।
ज़र्रे से ना जाने कब आसमां बन जाती हैं,
बेटियां बचपन में ही मां की मां बन जाती हैं।
Shayari On Bachpan
बचपन मे ही अच्छे रहते थे जनाब,
ना किसी की चाहत थी ना किसी का ज़िक्र।
ये खुदगार्जियों का दौर है कोई बचपन की कहानी नहीं,
अब दिलों में नफरत भरते हैं लोग घड़ों में पानी नहीं।
दुआएं याद करा दी गई थी बचपन में,
सौ ज़ख्म खाते रहे दुआ दिए गए।
काश की बचपन में ही तुझे मांग लेते,
हर चीज़ मिल जाती थी दो आँसू बहाने से।
बचपन वाले खिलौने पूछ रहे है,
कैसा लगता है जब लोग खेल कर चले जाते है।
बचपन साथ रखियेगा जिंदगी की शाम में,
उम्र महसूस नही होगी सफर के मुक़ाम में।
वह सुकून दोबारा लौट कर आया ही नहीं,
जो एक बार बचपन की दहलीज छोड़ गया।
हर एक रंग से खेले हैं यार बचपन में,
हर एक रंग का दुःख है हमारी झोली में।
मिट्टी भी जमा की और खिलौने भी बनाकर देखे,
पर ज़िन्दगी कभी ना मुस्कुराई फ़िर बचपन की तरह।
बचपन वाले खिलोने आवाज दे रहे है,
पूछ रहे है कैसा लगता है जब लोग तुम्हारे साथ खेलते है।
अंधेरे से कह दो की बचपन बीत गया है,
अब तुझसे डर नहीं सुकुन मिलता है।
नई किताब और उसके पन्नों की महक,
वाह क्या लाजवाब वक्त था बचपन।
पतली गली से HighwaY तक पुछ ले,
जो कारनामे तू आज करता है वो हम बचपन मे करते थे।
बचपन की ख्वाहिशें आज भी ख़त लिखती है मुझे,
शायद बे-ख़बर है इस बात से कि वो ज़िन्दगी अब इस पते पर नहीं रहती।
बड़े हो चुके होने का एहसास दिला के जिंदगी झिंझोड़ देती है,
बचपन तब ही ख़त्म हो जाता है जब माँ डाँटना छोड़ देती है।
Bachpan Shayari
आरज़ू बचपन से थी चाँद देखने की,
और फिर यूँ हुआ कि हम आप से टकरा गये।
मिट्टी भी जमा की और खिलौने भी बना कर देखे ,
पर ज़िन्दगी कभी न मुस्कुराई फिर बचपन की तरह।
अलमारी से मिले बचपन के खिलौने मेरी आँखों की उदासी देख कर बोले,
तुम्हें ही बहुत शौक था बड़ा होने का।
बेफिक्री की उस नींद को तरस गये,
जो बचपन मे हम बेहिसाब सोते थे।
बचपन की सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी ये थी कि,
बड़े होते ही ज़िन्दगी मज़ेदार हो जाएगी।
बचपन मे अन्धेरे से डर लगता था,
आज उसही अन्धेरे में सुकून मिलता है।
ज़िन्दगी कही खो सी गई है कभी वक्त तो कभी पैसो के हिसाब में,
कास वो बचपना फिर लौट आये जिसमे सब बेहिसाब था।
कहते है हसते-खेलते बीत जाये ये जिंदगी पर,
खेलना बचपन में छुट गया और हँसना जिम्मेदारीयौं ने भुलवा दिया।
सुकून की बात मत करो यारों,
बचपन वाला इतवार अब नहीं आता।
बचपन मे माँ-बाप का जो आतंक था,
जवानी में समझ आता हैं वो ही प्यार था ।
ढूंढने से भी नहीं मिलते अब
अपनी ज़िन्दगी के वो बेहतरीन लम्हें,
जब हम बचपन में त्योहार में खुशी के मारे सारा दिन इधर से उधर दौड़ते रहते थे।
हाँ मुझे बचपने में जीना पसंद हैं,
क्योंकि माँ के आँचल में छुप जाना मुझे पसंद हैं।
खंजर लिए खड़े थे मेरे इंतज़ार में,
वो दोस्त जिनके साथ बचपन गुजर गया।
बन्द कमरे ने बैठ दर्द अपना दीवारों को सुनाते रहे,
क्योंकि बचपन से सुना था दीवारों के भी कान होते हैं।
चाँद भी बड़ी अजीब चीज़ है यारो बचपन में मामू और,
जवानी में जानू नज़र आता है।
नसीब वालों को ही मिलती है मोहब्बत खैर,
हमारे तो बचपन से ही कर्म फूटे है।