Dr Kumar Vishwas Shayari in Hindi

Kumar Vishwas Shayari: नमस्कार दोस्तो, हमेशा की तरह आज फ़िर से हाजिर हैं एक नए पोस्ट के साथ जिसका टाइटल है कुमार विश्वास शायरी। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको जरूर अच्छी लगेगी और आप इसे अपने दोस्तो के साथ जरूर शेयर करेंगे।


1.उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती



उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती

हमको ही ख़ासकर नहीं मिलती


शायरी को नज़र नहीं मिलती

मुझको तू ही अगर नहीं मिलती


रूह में, दिल में, जिस्म में दुनिया

ढूंढता हूँ मगर नहीं मिलती


लोग कहते हैं रूह बिकती है

मैं जहाँ हूँ उधर नहीं मिलती



2.कुछ छोटे सपनो के बदले 


कुछ छोटे सपनो के बदले,

बड़ी नींद का सौदा करने,

निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे!

वही प्यास के अनगढ़ मोती,

वही धूप की सुर्ख कहानी,

वही आंख में घुटकर मरती,

आंसू की खुद्दार जवानी,

हर मोहरे की मूक विवशता,चौसर के खाने क्या जाने

हार जीत तय करती है वे, आज कौन से घर ठहरेंगे 

निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे!


कुछ पलकों में बंद चांदनी,

कुछ होठों में कैद तराने,

मंजिल के गुमनाम भरोसे,

सपनो के लाचार बहाने,

जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख से छाया मांगे,

उन के भी दुर्दम्य इरादे, वीणा के स्वर पर ठहरेंगे 

निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे



3.तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा


ओ कल्पव्रक्ष की सोनजुही

ओ अमलताश की अमलकली!

धरती के आतप से जलते

मन पर छाई निर्मल बदली

मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा

तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा


तुम कल्पव्रक्ष का फूल और

मैं धरती का अदना गायक

तुम जीवन के उपभोग योग्य

मैं नहीं स्वयं अपने लायक

तुम नहीं अधूरी गजल शुभे

तुम शाम गान सी पावन हो

हिम शिखरों पर सहसा कौंधी

बिजुरी सी तुम मनभावन हो

इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा

तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा


तुम जिस शय्या पर शयन करो

वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो

जिस आँगन की हो मौलश्री

वह आँगन क्या वृन्दावन हो

जिन अधरों का चुम्बन पाओ

वे अधर नहीं गंगातट हों

जिसकी छाया बन साथ रहो

वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो

पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा|

तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||


मै तुमको चाँद सितारों का

सौंपू उपहार भला कैसे

मैं यायावर बंजारा साधू

सुर श्रृंगार भला कैसे

मैन जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे

बारूद बिछी धरती पर कर लूँ

दो पल प्यार भला कैसे

इसलिये विवश हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा|

तुम मुझको करना माफ तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||




4.नेह के सन्दर्भ बौने हो गए


नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,

फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,

शक्ति के संकल्प बोझिल हो गये होंगे मगर,

फिर भी तुम्हारे चरण मेरी कामनायें हैं,

हर तरफ है भीड़ ध्वनियाँ और चेहरे हैं अनेकों,

तुम अकेले भी नहीं हो, मैं अकेला भी नहीं हूँ 

योजनों चल कर सहस्रों मार्ग आतंकित किये पर,

जिस जगह बिछुड़े अभी तक, तुम वहीं हों मैं वहीं हूँ 

गीत के स्वर-नाद थक कर सो गए होंगे मगर,

फिर भी तुम्हारे कंठ मेरी वेदनाएँ हैं,

नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,

फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,

यह धरा कितनी बड़ी है एक तुम क्या एक मैं क्या?

दृष्टि का विस्तार है यह अश्रु जो गिरने चला है,

राम से सीता अलग हैं,कृष्ण से राधा अलग हैं,

नियति का हर न्याय सच्चा, हर कलेवर में कला है,

वासना के प्रेत पागल हो गए होंगे मगर,

फिर भी तुम्हरे माथ मेरी वर्जनाएँ हैं,

नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,

फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,

चल रहे हैं हम पता क्या कब कहाँ कैसे मिलेंगे?

मार्ग का हर पग हमारी वास्तविकता बोलता है,

गति-नियति दोनों पता हैं उस दीवाने के हृदय को,

जो नयन में नीर लेकर पीर गाता डोलता है,

मानसी-मृग मरूथलों में खो गए होंगे मगर,

फिर भी तुम्हारे साथ मेरी योजनायें हैं,

नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,

फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं!



5.प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये


प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाए,

ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाए,


घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले,

अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले,


लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाए,

भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाए,


सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में,

नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे,


अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...


लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं,

कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं,


वो लड़ाई को भले आर पार ले जाएँ,

लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ,


जिसकी चौखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी

उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ


हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब

हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे


अँधेरे वक्त में भी गीत गाए जायेंगे...



6.फिर बसंत आना है


तूफ़ानी लहरें हों

अम्बर के पहरे हों

पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों

सागर के माँझी मत मन को तू हारना

जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है

पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है


राजवंश रूठे तो

राजमुकुट टूटे तो

सीतापति-राघव से राजमहल छूटे तो

आशा मत हार, पार सागर के एक बार

पत्थर में प्राण फूँक, सेतु फिर बनाना है

पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है


घर भर चाहे छोड़े

सूरज भी मुँह मोड़े

विदुर रहे मौन, छिने राज्य, स्वर्णरथ, घोड़े

माँ का बस प्यार, सार गीता का साथ रहे

पंचतत्व सौ पर है भारी, बतलाना है

जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है

पतझर का मतलब है, फिर बसंत आना है



7.बाँसुरी चली आओ


तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा

साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा

तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है


तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है

तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है

रात की उदासी को याद संग खेला है 

कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है

औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है


तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से

भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से

दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है

आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है

कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है



8.मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक


मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक

रोज़ जाता रहा, रोज़ आता रहा

तुम ग़ज़ल बन गईं, गीत में ढल गईं

मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा


ज़िन्दगी के सभी रास्ते एक थे

सबकी मंज़िल तुम्हारे चयन तक रही

अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्

मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं

प्राण के पृष्ठ पर प्रीति की अल्पना

तुम मिटाती रहीं मैं बनाता रहा


एक ख़ामोश हलचल बनी ज़िन्दगी

गहरा ठहरा हुआ जल बनी ज़िन्दगी

तुम बिना जैसे महलों मे बीता हुआ

उर्मिला का कोई पल बनी ज़िन्दगी

दृष्टि आकाश में आस का इक दीया

तुम बुझाती रहीं, मैं जलाता रहा


तुम चली तो गईं, मन अकेला हुआ

सारी यादों का पुरज़ोर मेला हुआ

जब भी लौटीं नई ख़ुश्बुओं में सजीं

मन भी बेला हुआ, तन भी बेला हुआ

ख़ुद के आघात पर, व्यर्थ की बात पर

रूठतीं तुम रहीं मैं मनाता रहा



9.मैं तो झोंका हूँ


मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊँगा

जागती रहना, तुझे तुझसे चुरा ले जाऊँगा


हो के क़दमों पर निछावर फूल ने बुत से कहा

ख़ाक में मिल कर भी मैं ख़ुश्बू बचा ले जाऊँगा


कौन-सी शै तुझको पहुँचाएगी तेरे शहर तक

ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊँगा


क़ोशिशें मुझको मिटाने की मुबारक़ हों मगर

मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊँगा


शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त-दुश्मन हो गए

सब यहीं रह जाएंगी मैं साथ क्या ले जाऊँगा



10.सफ़ाई मत देना


एक शर्त पर मुझे निमन्त्रण है मधुरे स्वीकार

सफ़ाई मत देना!

अगर करो झूठा ही चाहे, करना दो पल प्यार

सफ़ाई मत देना


अगर दिलाऊँ याद पुरानी कोई मीठी बात

दोष मेरा होगा

अगर बताऊँ कैसे झेला प्राणों पर आघात

दोष मेरा होगा

मैं ख़ुद पर क़ाबू पाऊंगा, तुम करना अधिकार

सफ़ाई मत देना


है आवश्यक वस्तु स्वास्थ्य -यह भी मुझको स्वीकार

मगर मजबूरी है

प्रतिभा के यूँ क्षरण हेतु भी मैं ही ज़िम्मेदार

मगर मजबूरी है

तुम फिर कोई बहाना झूठा कर लेना तैयार

सफ़ाई मत देना



11.हो काल गति से परे चिरंतन


हो काल गति से परे चिरंतन,

अभी यहाँ थे अभी यही हो।

कभी धरा पर कभी गगन में,

कभी कहाँ थे कभी कहीं हो।

तुम्हारी राधा को भान है तुम,

सकल चराचर में हो समाये।

बस एक मेरा है भाग्य मोहन,

कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो।

न द्वारका में मिलें बिराजे,

बिरज की गलियों में भी नहीं हो।

न योगियों के हो ध्यान में तुम,

अहम जड़े ज्ञान में नहीं हो।

तुम्हें ये जग ढूँढता है मोहन,

मगर इसे ये खबर नहीं है।

बस एक मेरा है भाग्य मोहन,

अगर कहीं हो तो तुम यही हो।


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