One Sided Love Shayari: नमस्कार दोस्तो, हमेशा की तरह आज फिर से हाजिर है एक नए पोस्ट के साथ जिसका टाइटल है एक तरफा शायरी। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आयेगी और आप इसे अपने दोस्तो के जरूर शेयर करेंगे।
वो तो सहूलियत हमारी कहिए कि इज़्ज़त से रवाना किया उन्हें,
नीयत के बादशाह कहे जाते हैं जो हकीक़त में घिनौनें निकले।
उनका कहना है हम इश्क़ नहीं करते उनसे,
हमनें भी मान ली गई बात काटना सही नहीं समझा।
लड़कर जीती गई बाजियाँ बहोत तारीफ़ देती हैं,
बिना जंग के जीती लड़ाईयाँ यक़ीन मानिए असल सुकून देती हैं।
परेशान रहना किसी समस्या का हल नहीं लेक़िन,
ज़्यादातर चीज़ों को नज़रन्दाज़ कर देना हुनरमंदी का सबब है।
वो जो कहते हैं हम बदल गए हैं अब,
उनका भी बराबर हाँथ है इस इत्तेफ़ाक़ में।
आना जाना लगा रहता है उनका मेरे शहर में,
तसल्ली इस बात की है कि वो मेरे दिल में सुकूँ से बैठे हैं एक अरसे से।
कुछ हादसे लगते हैं भरोसा बनानें के लिए,
बेग़ैरत लोगों से उम्मीद करना हमारी ही ग़लती है शायद।
फर्क़ है उनके औऱ किसी और के होंने में,
इश्क है और इश्क़ हो ही जाएगा में जैसे फर्क़ होता है।
नाराज़ नहीं मसरूफ़ हैं वो,
मसरूफ़ नहीं इंतज़ार में बैठे हैं हम।
इत्तेफाक देखिए,
बेहतर की तलाश में बेहतरीन खो दिया।
किसी रोज़ टहल कर देखिए शहर हमारे साथ,
हमारा शहर भी बा-खुदा जन्नत से कम नहीं।
हार मान लेनें में इतना भी क्या बुरा,
हर बार छोटी लड़ाईयाँ जीतना ज़रूरी तो नहीँ।
नहीं चाहता वो ना सही,
ख़ुदा नें दुनियाँ में कुछ औऱ बनाया होगा मेरे लिए।
नाज़ुक नहीं थे हम फ़िर भी,
इत्तेफ़ाक़ देखिए उनका रोना हमसे सम्भल नहीं पाया।
अर्जी लगाई है हमनें उनके दरबार में,
सुना है वहाँ देर है अंधेर नहीं।
बड़ी बड़ी बातें करना आसान है,
ख़ुद मानकर उन्हें निखर जाना मुश्किल है बहोत।
कश्मकश में दिन गुज़र जाता है रहा रोज़ मेरा,
उन्हें हमसे इश्क़ है या हर शख़्स से वो कुछ इसी अंदाज में मिला करते हैं।
नख़रे करना आदत है उनकी,
उनसे बताया तो नहीं है पर ये आदत उनकी पसंद है हमें।
परेशान मत होईए जिंदगी की दौड़ में,
खुदखुशी करनें वालों को कोई बहादुर नहीं कहता।
अदाओं से मार देना कोई उनसे सीखे,
पर सुकून है कि वो घायलों से हमदर्दी रखते हैं।
शराब पीनें का कोई इरादा था तो नहीं,
पर उनके लरज़ते होठों को मैं इनकार कर नहीं पाया।
क़सम की कोई कीमत नहीं बाजार-ए-इश्क़ में,
हमनें कलेजा उन्हें तोहफ़े में दिया औऱ उन्होंने ठोकर मार दिया बिना देखे।
बग़ैर उनके दीदार हमारी रात सुकून से कटती नहीं,
इत्तेफ़ाक़ देखिए हाल-ए-दिल उनका भी कुछ यही समझ आता है।
ऐसा नहीं कि पहले क़भी कोई अपना नहीं लगा,
पर ऐसा है कि आप जैसा कोई दूसरा कायनात में है ही नही।
अजूबे सी शख़्सियत है उनकी,
हर बार मिलनें के बाद जी नहीं भरता।
सुना है रंगों वाला दिन नज़दीक आ रहा,
पर हमारे शहर का मौसम रूखा रूखा सा हैकिसी की ग़ैर मौजूदगी की वज़ह से।
वो रूठे हैं सुबह से रूठे होंगे,
हम तो फ़िर भी उन्हें यूँ ही परेशान करते रहेंगे।
मेरे वज़ूद का एक ख़ास किस्सा है पुराना,
मैं जहाँ भी रहा अनगिनत मुझसे जलते रहे हैं।
ज़हन में उमड़ते ख़ाब भी रंगीन थे आज,
कुछ इस तरह मेरे श्याम मेरे साथ थे आज।
राज़ की बात तो नहीँ है फ़िर भी,
रंग बदलते चेहरों को देखते देखते अब रंगीन चेहरों को देखकर अज़ीब नहीं लगता।
शराब इतनीं भी बुरी तो नहीं,
पर यकीन है की उनकी भी लत शराब से कम जानलेवा नहीं।
लोग ऐसे भी हैं जो एक बोतल में खरीदे गए,
चुनाव पूरी ईमानदारी से कोई जीता नहीं आज़तक।
बहुत सारे दोस्त होनें ज़रूरी नहीं,
बस कुछ बेहतरीन लोग होंने ज़रूरी हैं सफ़र में साथ चलनें के लिए।
जाम उतार लाओ आज पीना है हमें,
कोई ख़ास ग़म तो नहीं है फिर भी पीनें में हर्ज़ ही क्या भला।
बात कड़वी हो तो ज़रूरी नहीं की सही ही हो,
चिल्ला कर कह देनें से झूठ सच नहीं बन जाता।
समय की अदाकारियाँ हैं सब कुछ,
वक़्त आता है औऱ हमें वही अच्छी लग रही चीज़ बेहूदा लगनें लगती है।
ज़ख्मों का हिसाब होगा तो ज़रुर,
सुना है ख़ुदा की अदालत मेंझूठी गवाही औऱ फर्जी सुबूत काम नहीं आते।
शाम भी थी धुआं धुआं हुस्न भी था उदास उदास,
दिल को कई कहानियां याद सी आ के रह गईं।
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ,
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
सुना है मांगनें से मौत भी मिल जाती है जहाँ में,
पर देखते हैं क्या ख़ुदा जिंदगी भी मांगनें पर देता है।
सस्ती है जिंदगी वक़्त महंगा है,
कुछ ख़ास देना है गर किसी को वक़्त देना सबसे बेहतर होगा।
बड़ी दोस्तियाँ देखी हैं मैनें,
यक़ीन मानिए दिखावे वाली एक भी नहीं चली ज्यादा दिन।
अफ़सोफ की क़सम खानीं पड़ी उन्हें,
वो तो गर मज़ाक में भी मुझे मुर्दा कहदें मैं वहीँ मर जाऊँ।
चलो माना बहुत प्यारी हो तुम औऱ भी बहुत ख़ास हो तुम मगर,
ये जो मुझसे इतना ड्रामा करती हो ये क्या अच्छी बात है।
वो जो कहते हैं पैसों से खुशियाँ खरीदी नहीं जाती,
शायद उन्होंने भूखे पेट परिवार की तड़प देखी नहीं होगी।
इतनीं जल्दबाज़ी न कीजिए उसे सब राज़ बतानें की,
बहोत अच्छी दोस्तियाँ भी धोखे की वज़ह से टूट जाते देखी हैं समय नें।
जिसकी ना सुनकर वो उस दिन रोनें लगा था,
आज पता चला वो उसकी लिस्ट का तीसरा इश्क़ था।
बस ख़याल आया ख़ाब में और मैं हँसनें लग पड़ा हक़ीक़त में,
अगर ये इश्क़ है तो सुनों तुमसे इश्क़ है मुझे।
वो जलते तो हैं हमें किसी औऱ से बात करता देखकर,
उम्मीद है कि वो बेइंतेहा मोहब्बत करते होंगे हमसे।
एक उम्र होती है घाव सहनें की,
ऐ जिंदगी इम्तेहान तो हमेशा अपनीं कक्षाओं का ही होते देखा था।
ये शाम हँसकर बीते ये उसे मंजूर नहीं शायद,
यही वजह है कि उसकी याद चली आती है हर रोज़ रुला जानें।
चलिए बहुत वक़्त हुआ,
आइए दुबारा आप ही से इश्क़ करके देखते हैं।
आसान मौत चाहिए तो औरों की बात सुनिए,
गर लाज़वाब जिंदगी चाहिए तो अपनें मन की करिए।
याद नहीं आती मुझे ये कहकर मैं चिढ़ाता रहता हूँ,
बच्चों की तरह ज़िद करती है वो मुझसे सच सुननें के लिए फ़िर।
सुनाया जाए वो एक एक किस्सा मेरे ज़ख़्मों का,
मैं इस बार अदालत से इंसाफ लिए बग़ैर लौटूँगा नहीं।
नकली लोग हैं यहाँ बहोत सारे,
आप क्या नकली नोटों की बात करते हैं।
हर रोज वो मुझसे बेहतर की उम्मीद करता है,
मैं शायद ऐसे ही एक साथी की तलाश में था अबतक।
मेरे एक ख़याल में वो मेरे हो चुके हैं,
वही एक ख़याल मैं हर लम्हा जीना चाहता हूँ बस।
सबके पाप धुलते धुलते,
सुना है गँगा बड़ी मैली ही गई हैं आजकल।
इत्मिनान से हक़ जमा लो मुझ पर,
हमें यहीं नहीं रहना ख़ुदा के घर भी जाना है।
अपनीं अच्छाइयों का क्या गुणगान किया जाए,
सुना है शहर भर में वही हमारी तारीफ़ करते फ़िरते हैं।
मंजूर है हमें उनका नज़रअंदाज़ भी करना,
बस वो दिखते रहें शहर में हम जिंदा रहेंगे।
हम जो निकले घर से मयख़ाने की ओर,
सारा मोहल्ला ही जैसे दोस्ती को आ गया।
हारना पसंद नहीं था मुझे पहले,
अब मैं ख़ुद की हार पर भी मुस्कुरा लिया करता हूँ।
वो जलते नहीं मुझसे या मेरी बात से,
बस उन्हें आपका मेरे साथ होना चुभ जाया करता है।
मेरे मानने न माननें से क्या होगा,
जो मुक़द्दर का तमाशा है वो तो पूरा होगा।
बस एक आख़िरी खौफ़ बाक़ी है ज़िन्दगी तुझसे,
मर जाएँगे किसी रात गुमनामी में सिसकते।
आसान तो नहीं था किसी को मुझसे इश्क़ होना,
पर इत्तेफ़ाक देखिए हो गया है किसी को आजकल।
आशिक़ी में मीर जैसे ख़्वाब मत देखा करो,
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो।
नज़र फ़ेर लिया करते हैं अपना कहनें वाले,
तुम तो मुसाफ़िर थे तुमसे क्या शिकायत।
शहर में उनके अब शामें नहीं होती शायद,
वरना तो हर शाम बात करनें का वादा हुआ था।
चलो ख़ैरियत की बात है शहर में अमन चैन है,
हाँ बात ये भी है की चुनावों में अभी देरी है।
तेरे नाम के कई लोग मिले हैं मुझसे,
इत्तेफ़ाक़ देखिए हर किसी से दिल मेरा यूँ ही तो नहीं लग जाया करता।
इतनीं नाराज़गी भी भला ठीक है क्या,
क्यूट वाला इंस्टाग्राम रील तो रूठ जानें पर भी भेजा जाता ही है।
थोड़ा सोचकर जीता तो क्या जीता,
लड़कर खड़े रहे आख़िर तक यही तो जिंदगी का मज़ा है।
नज़र आदमीं की आज़कल कमज़ोर है साहब,
खामियाँ सब की सब उसको औरोँ में दिखती है।
वापस लेता हूँ मैं अपनीं क़समें सारी,
वो इस क़ाबिल नहीं की किसी के भरोसे का भार ले पाए।
हर एक बूँद बारिश की जिया हूँ मैं,
इस बार उनके साथ बाइक पर खूब भीगा हूँ मैं।
उनके दरवाजे से हमें एक शिकायत छोटी सी है,
जब वो आनें वाले हों ये हमें इत्तिला नहीं करते।
दस्तख़त ख़ून से तो नहीं किये है मैनें,
पर उनसे उम्र भर प्यार करनें का इरादा रखते हैं।
सुना है फ़रिश्ते भी रो देते हैं कभी कभार,
मग़र काम है उनका किसी की रूह कहीं को पहुचाना।
बुरी लग गई तो माफ़ी की उम्मीद रहेगी,
बात कुछ कड़वी लिख ही देती है क़लम मेरी।
एक ख़याल है कि हमें सोनें नहीं देता,
औऱ लोगों को लगता है कि हम मरीज़-ए-इश्क़ हो गए हैं।
सिर्फ़ मंदिर जानें से भगवान कहाँ मिला करते हैं,
सुना ही नेक मरना होता है उसके दरबार में पहुँचने के लिए।
आपका शरमाना भी कतई कातिलाना लगता है,
देखिए ऐसा न हो बेवज़ह लोग मरनें लग जाएँ।
आइना देख कर तसल्ली हुई,
हम को इस घर में जानता है कोई।
मुमकिन नहीं है तसल्ली से तुम्हें देख पाना,
ये लोग मुझे इतना सा भी मौका क्यों नहीं देते।
जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा,
किसी चराग का अपना मकाँ नहीं होता।
अब बोलनें में भी हमें ऐतराज़ है ख़ुद पर,
बेग़ैरत लोगों पर लब्ज़ों को क्यों खर्चा जाए।
बड़ी भूल कर ली है मोहब्बत करके,
अब ये बात भूले भी भूलती नहीं हमसे।
ज़रूरत पड़े अगर तो बता देना,
दिल जला लेंगे ख़ुशी से तुम्हारी राह में रौशनी के लिए।
घर की दीवारें तक मेरे बारे में बहुत कुछ समझनें लगी हैं,
पेंट भी उचड़नें से पहले मेरा हाल देखकर कुछ दिन और चिपका रहता है।
अपनीं बात मनवाने में इतनें माहिर हैं वो,
कि हर एक धोखे के बाद सुबूत भी हमीं से मिटवाये गए हैं।
जब कुछ नहीं बचा उन्हें मनानें के लिए,
हमनें अपनीं उम्मीदों का ही सौदा कर लिया।
ये जो लोग बाहर से बड़े अच्छे दिखाई देते हैं,
हक़ीक़त जाननें पर शायद वो कोई औऱ निकलें।
वो बीमार हैं ज़रा सा कल से,
हाल हमारा भी आज कुछ ठीक लग नहीं रहा।
चलो लौट आओ बहुत देर हो गई,
ऐ ज़िंदगी इतनीं भी शिकायत क्या हमसे।
क्या बड़प्पन की बात करी जाए,
मुझे बढ़ा-चढ़ा कर बोलनें का हुनर कभी आया ही नहीं।