Propose Shayari: नमस्कार दोस्तों, हमेशा की तरह आज फिर से हाजिर है एक नए पोस्ट के साथ जिसका टाइटल है प्रपोज शायरी। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगा और आप इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करेंगे।
जलने वाले को जलने दे,
तीर निग़ाहो के चलने दे।
कुछ खास जादू नहीं रहा मेरे अल्फाजों में भी अब,
बस ये बातें दिल से निकलकर दिल तक पहुँचती हैं।
अच्छा ये बताओ तुम्हारी मा कैसी है?
उन्हीं की झूठी कसमें खाकर तुम मुझे बहलाया करते थे ना।
बहुत जुदा है औरों से मेरे दर्द की कहानी,
जख्म का कोई निशां नहीं और दर्द की कोई इंतहा नहीं।
अब तुम्हे भुलाने के लिए कुछ तो करना होगा,
मुझे सुकून के लिए एक बार भीर मरना होगा।
कभी कभी मेरा खुद से मिलने का जी चाहता है,
काफि कुछ सुना है मैने खुद के बारे में।
वो अचानक नहीं बिछड़ा मुझसे,
उसको एक बहाने कि तलाश थी।
खुद पर बीती तो रोते हो बिलखते हो,
मुर्शद हमने किया वो इश्क नहीं था क्या।
फ़क़त ईतनी सी बात है दुनिया वालों में,
दिल में है फरेब चेहरा है आशिकाना।
दर्द की तुरपाईयो की नज़ाकत तो देखिए,
एक धागा छेड़ते ही जख्म पूरा खुल गया।
इस दौर में लोगो में वफा ढूंढ रहे हो,
बड़े नादान हो साहब ज़हर की शीशी में दवा ढूंढ रहे हो।
किसे ढूंढ रहे हो अब तुम यूं इस गुमनाम सी रुह में,
वो लफ़्ज़ों में जीने वाला अब खामोशी में रहता है।
ऐसे ही नहीं बन जाते गैरो से गहरे रिश्ते,
कुछ खालीपन तो अपनों ने ही दिया होगा।
क्यूं करते हो मुझसे इतनी खामोश मोहब्बत,
लोग समझते है इस बदनसीब का कोई नहीं।
यहां मजबूत से मजबूत लोहा टूट जाता है,
कहीं झूठे इकठ्ठे हो तो सच्चा टूट जाता है।
माना कि अनमोल हैं हसरत-ए-नायाब हैं आप,
हम भी वो लोग हैं जो हर दहलीज़ पर नहीं मिलते।
गिरा पत्थर उठाना पड़ रहा है,
ताल्लुक है,निभाना पड़ रहा है।
गर राज ज़ाहिर ना होने दो तो एक बात कहूँ,
मैं धीरे धीरे टूट रहा हूँ अब हर रोज तेरे बिना।
धीमे लहजों में कभी मैंने भी मधुर गीत छेड़ा था,
ठहरी हुई हवाओं में लफ़्ज़ों का जादू बिखेरा था।
अश्क बह गए मगर इतना कह गए,
भीर आएंगे तेरी आंखो में तू हमें अपनी सी लगती है।
मेरी फितरत में नहीं था तमाशा करना,
बहुत कुछ जानते थे मगर खामोश रहे।
नफरतों में ही दर्द हो ये जरूरी तो नहीं,
कुछ मोहब्बतें भी कमाल कर जाती हैं।
फिर तेरा ज़िक्र किया सवेरे की हवा ने मुझ से,
फिर मेरे दिल को धड़कने के बहाने आए।
वो मुझसे रोज़ कहते हैं तुम्हें किस बात का ग़म है,
उन्हें कैसे बताऊँ मै के उनके दम से ही ग़म है।
हिसाब बराबर रहा चलो कोई गम नहीं,
हमारे पास तुम नहीं तुम्हारे पास हम नहीं।
थोड़ा सा नाराज क्या हुए उस शख्स से,
वो हमारे बिना रहना सीख गया।
वफां-ऐ-दिल कभी बाजार में नही मिलतें,
जो शिद्दत से चाहें जिंदगी में वो बार बार नही मिलतें।
मुझे सबसे अलग रखना ही उसका शौक़ था वरना,
वो दुनिया भर का हो सकता था मेरा क्यों नहीं होता।
मैं लफ़्ज़ों से लिख नहीं पाया कभी वो बेचैनियां मोहब्बत की,
मैंने तो हर बार सिर्फ उसे दिल की गहराईयों से ही पुकारा था।
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो,
ज़िंदगी क्या है किताबों से हटा कर देखो।
भूल न जाऊं माँगना उसे हर नमाज़ के बाद,
यही सोच कर हमने नाम उसका दुआ रक्खा है।
सिर्फ उस की ही तो बात थी ए खुदा,
तुझसे पूरी कायनात किसने मांगी थी।
दिल की किताब का कोई वर्क अगर खाली होता,
निगाहे पढ़ भी नही पाती अगर बेवफा लिखा होता।
मासूमियत तुझमे है पर तू इतना मासूम भी नहीं,
मैं तेरे कब्जे में हूँ और तुझे मालूम भी नहीं।
ना जाने सारी खुशियाँ क्यों रूठ सी गयी हैं मुझ से,
इस ज़िंदगी को भी किसी की नज़र लग जाये अब।
ये अरमान ही तो बरसो तक जला करते हैं,
इंसा तो बस इक पल मे खाक हो जाता है।
फासलों को तय करने का हौसला न परखो मेरा,
तुम महज बस अपने जहन में मुझे रहने तो दो।
कब कहाँ किसी हकीम से इश्क़ का मर्ज सुधरता है,
मोहब्बत की सीढियां जो चढ़ता है वही उतरता है।
मेरे मालिक ने मेरे हक़ मे यह एहसान किया,
ख़ाके नाचीज़ था सो मुझे इंसान किया है।
करेंगे याद जिस दिन वो प्यार के फसाने को,
तन्हाई ही ढूंढेंगे वो भी सिर्फ आँसू बहाने को।
मोहब्बत करने की मुझे सजा देते हो,
मैं रोता हुं और तुम मजा लेते हो।
फूल शबनम में डूब जाते है झख्म मरहम में डूब जाते है,
जब आते है खत तेरे हम तेरे गम में डूब जाते है।
ऐ खुदा इतनी सी उम्र चाहिये मुझे,
ना मरू उससे पहले ना जिऊँ उसके बाद।
मिलूंगा उसी मोड़ पर जहां कभी छूटा था मैं,
मेरे टुकड़े वहीं मिलेंगे जहां कभी टूटा था मैं।
अब जाना ही होगा आप सभी को छोड़कर,
वक़्त ने चाहा तो फिर मिलेंगे किसी मोड़ पर।
मेरे किस्से मे तुम आते हो,
मेरे हिस्से मे क्यों नही आते।
पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुअराओ तो कोई बात बने,
सर झुकाने से कुछ नहीं होगा सर उठाओ तो कोई बात बने।
मेरे क़िस्मत की बात मत करना दोस्तो,
मैने वो ज़ख्म भी खाए हैं जो मेरे लकीरों में नही थे।
तुमने भी तो कोशीश नही की मुझे समझने की,
वर्ना वजह कोई नही थी तेरे मेरे उलझने की।
लिख देना ये अल्फाज मेरी कबर पे,
मौत अछी है मगर दिल का लगाना अच्छा नहीं।
खुशी से कांप रही थी ये उंगलियां इतनी,
डिलीट हो गया एक शख्स सेव करने में।
भले ही मोहब्बत का जिक्र करता है ये सारा ज़माना,
पर प्यार की शुरुआत आज भी मां से शुरू होती है।
जो रुला के मना ले वो पापा है,
जो रुला के ख़ुद रो दे वो मां है।
हर बच्चा अपनी उम्र से नौ महीने बड़ा है,
ये बात सिर्फ़ उसकी मां को पता होती है।
बिखर कर रह गया वजूद मेरा,
मैं तो समझा था इश्क़ संवार देगा मुझे।
वो कहते है कि उन पर कोई ग़ज़ल लिखूं,
मैं एक ग़ज़ल पर कैसे दूसरी ग़ज़ल लिखूं।
ये इश्क भी क्या चीज़ है एक वो है जो,
धोखा दिए जाते हैं और एक हम है मौका दिए जाते हैं
वो कहते है भुला देना पुरानी बातों को,
कोई समझाए उन्हे के ईश्क कभी पुराना नहीं होता।
सुना है ऊपर वाले ने लाखो लोगो की तक़दीर सवारी है,
काश वो एक बार मुझे भी कह दे के अब तेरी बारी है।
मार्च आ गया है जरा अपना ख्याल रखना,
बुजुर्ग कहते है गर्मियों में अक्सर दिल ज्यादा जलते है।
झूठ बोलते है वो लोग जो कहते हैं,
हम सब मिट्टी से बने हैं मैं कईं अपनों से वाक़िफ़ हूँ जो पत्थर के बने हैं।
तेरी तो फितरत थी सबसे मोहब्बत करने की,
हम तो बेवजह खुद को खुशनसीब समझने लगे।
शौक पूरे कर लो ए दोस्तो,
ज़िन्दगी तो खुद ही पूरी हो जाएगी एक दिन।
छूकर जिस्म नापाक नही करना है मोहब्बत को तुम्हारे,
चूमकर माथा तुम्हारा चाहना है तुम्हें इबादत की तरह।
मेरे अपने करने लगे है बगावत आजकल,
गैरों को होने लगी है मोहब्बत मुझसे।
अल्फ़ाज़ चुराने की जरूरत ही न पड़ी कभी,
तेरे बेहिसाब ख्यालों ने बेतहाशा लफ्ज़ दिये।
शिकवे शिकायत में उलझ कर रह गई मोहब्बत अपनी,
समझ नहीं आता इश्क किया था या कोई मुकदमा लङ रहे थे।
हमको एक फूल तक नसीब नहीं,
हमसे पूछो बहार की असल कीमत।
कुछ तो उधार बाकी है आपका मुझ पर,
वरना यूँ ही नहीं जुड़ते शब्दों के धागे।
जो दर्द मेरी जान पे रहता था रात-दिन,
वो दर्द मेरी ज़िन्दगी के काम आ गया।
कभी फुर्सत में बैठ कर पढ़िये मेरे अल्फाजों को,
तुम पर ही शुरू और तुम पर ही खत्म होंगे।
नसीब अच्छा ना हो तो खूबसूरती का कोई फायदा नहीं,
दिलों के बादशाह अक्सर फकीर हुआ करते हैं।
कहानी अज़ीब है लेकिन यही हक़ीक़त है,
वो बहुत बदल गया है वादे हज़ार करके।
कहने वालों का कुछ नहीं जाता,
सहने वाले कमाल करते हैं।
कौन ढूंढें जवाब दर्दों के,
लोग तो बस सवाल करते हैं।
तब तक कमाओ जब तक महंगी चीज सस्ती ना लगने लगे
चाहे वो सम्मान हो या सामान।
जिंदगी मे चुनौतियाँ हर किसी के हिस्से नहीं आती,
क्योंकि किस्मत भी किस्मत वालों को ही आज़माती है।
फूल है गुलाब का कोई असला तो नहीं,
चुम्मी सुम्मी ले लूं कोई मसला तो नहीं।
दर्द के बाज़ार मे खूब तरक्की कमा रहा हूं,
पहले छोटी दुकान थी अब शोरूम चला रहा हूं।
ये मिलावट का दौर हैं साहब यहाँ,
इल्जाम लगायें जाते हैं तारिफों के लिबास में।
बदन की कैद से बाहर ठिकाना चाहता है,
अजीब दिल है फिर उस बेवफा के पास जाना चाहता है।
करते हैं वादे लोग तसल्लियां देने के लिए,
मतलब निकल जाए तो तोड़ते बड़े शौक से हैं।
ज़ुबान और दिमाग तेज़ चलाने से,
रिश्तों की रफ़्तार धीमी पड़ जाती है ।
हाए रे मजबूरियाँ महरूमियाँ नाकामियाँ,
इश्क़ आख़िर इश्क़ है तुम क्या करो हम क्या करें।
तोड़ के तमाम वादे उसने पापा की इज्जत रख ली,
फिर उसने साड़ी पहन ली और हमने दाड़ी रख ली।
शांत रहने का मन कर रहा है,
आज कुछ कहना जायज़ सा नहीं लग रहा।
अलविदा कह चुके है तुम्हे,
जाओ आँखो पर ध्यान मत दो।
खींच लेती है मुझे उसकी मोहब्बत,
वरना मै बहुत बार मिला हूँ आखरी बार उससे।
प्यार करना सिखा है नफरतो का कोई ठौर नही,
बस तु ही तु है इस दिल में दूसरा कोई और नही।
जिसकी मोहब्बत मैं हम यहां तड़प रहे है,
उनका भी हाल देखो बिस्तर पर करवट बदल रहे है।
जाना तेरी फिकर मुझे इस कदर है,
जैसे अधूरा मेरी जिंदगी का सफर है।
चाहत चाँदनी की चाँद को चमकने पर मजबूर करती है,
मौत आदमी की आदमी को जीने पर मजबूर करती है।
रहे सलामत जिंदगी उनकी जो मेरी खुशी की फरियाद करते हैं,
हे भगवान उनकी जिंदगी खुशियों से भर दे जो मुझे याद करने में अपना एक पल बर्बाद करते हैं।
तुम्हारा नाम ना लिखता तो और क्या करता,
सवाल आया था पर्चे में के ज़िन्दगी क्या है।
मैं खुद इकरार कर लूंगा मैंने जान खुद दी थी,
पन्डतायन मैं तुमको हाले-परिशां देख नहीं पाऊंगा।
उसकी मोहब्बत का मेरे पास कोई जवाब नही है,
एक वफा के अलावा मेरे पास और कुछ नही है।
बुलंदियों पे यक़ीनन यक़ीन रखता हूं,
मगर में पैर के नीचे ज़मीन रखता हूं।
मोहब्बत के शोले भड़क रहे थे दोनो तरफ,
यहां हम जल रहे थे वहा वो पिघल रहे थे।
उसकी मोहब्बत इबादत की तरह थी,
हाथ उसने उठाए था दुआ मेरी कबूल होती थी।
मोहब्बत मैं उसने वो मुकाम हासिल किया है,
रोजे रखे उसने और सवाब को मेरी झोली मैं डाला है।
बस यही दो मसले जिंदगी भर ना हल हुए,
ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब मुकम्मल हुए।
वह हंसी बहुत कुछ कहती थी,
पर अपने में ही रहती थी।
मकड़ी भी नहीं फँसती अपने बनाये जालों में,
जितना आदमी उलझा है अपने बुने ख़यालों में
बहुत रोई होगी वो खाली कागज देखकर,
खत मे उसने पूछा था जिन्दगी कैसे बीत रही है।
सबके कर्ज़े चुका दूँ मरने से पहले ऐसी मेरी नीयत है,
मौत से पहले तू भी बता दे ज़िंदगी तेरी क्या कीमत है।
दुश्मनों की महफ़िल में चल रही थी मेरे कत्ल की साजिश,
मैं पहुंचा तो बोलें यार तेरी उम्र बहुत लम्बी है।
मुझे यकीन है अपने लफ्जो के हुनर पर,
कि लोग मेरा चेहरा भूला सकते है पर बाते नही
मोहब्बत ख़ूबसूरत होगी किसी और दुनियाँ में,
इधर तो हम पर जो गुज़री है हम ही जानते हैं।
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