Sad Shayari for Boys: नमस्कार दोस्तो, हमेशा की तरह आज फिर से हाजिर है एक नए पोस्ट के साथ जिसका टाइटल है सैड शायरी। हम उम्मीद करतें है की ये पोस्ट आपको पसंद आयेगा और आप इसे अपने दोस्तो के साथ जरूर शेयर करेंगे।
चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले ,
कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले।
माँग कर देख क्यों नहीं लेते हमको,
ख़ुद को ख़ुदा समझनें का भरम शायद टूट जाए।
मैं खुद ऊलझा हूँ अपनी कहानी मैं,
मैं कहाँ किसी के किस्से का किरदार बनू।
जो रह सका वो रुका,
जो गया वो वक़्त की चालाकी में आ गया।
ये आईने नहीं दे सकते तुम्हें तुम्हारी खूबसूरती की सच्ची ख़बर,
कभी मेरी इन आंखों में झांक कर देखो की कितनी हसीन हो तुम।
अब तो तोड़नें की इजाज़त भी नहीं लेनीं है,
चलो आओ जब कभी मन करे खेलनें का तो।
उन खयालों से अब निकल चुके हैं यार,
अब ऐसा तो मत कहो कि इश्क़ में मर जाना होता है।
अर्ज़ किया है ज़िन्दगी में अगर ग़म न होते,
तो शायरों की गिनती में हम न होते।
मांगा नही ख़ुदा से तुम्हे मगर इशारा तुम्ही को था,
नाम लिया नही मै ने मगर पुकारा तुम्ही को था।
क़ब्रों में नहीं हम को किताबों में उतारो,
हम लोग मोहब्बत की कहानी में मरे हैं।
शायरी में कहाँ सिमटता है दर्द-ए-दिल दोस्तो,
बहला रहे है खुद को जरा कागजों के साथ।
ज़ुल्फ़ों को सँवारना सीख क्यों नहीं लेते,
बेवज़ह रोज़ हमारे दिल को चोटिल होना पड़ता है।
तुम्हारे साथ खामोश भी रहूँ तो बात पूरी हो जाती है,
तुम में तुम से तुम पर ही मेरी दुनिया पूरी हो जाती है।
बड़ी आसानी से औरों की चीज़ को अपना कह देते हैं लोग,
ये वो दुनियाँ है जहाँ ईमान नहीं कइयों में।
उतर रहा है कोई दूसरा फ़िर से सांसों में,
हमें तो भरम था कि अब इश्क़ के क़ाबिल न रहे हम।
किसी के लिए जब कोई सफर में रुकना नहीं चाहे,
समझ लो उम्र पूरी हो चुकी है उस खास रिश्ते की।
जो बुरे हैं बुराई उनका भी रास्ता रोकेगी,
ग़लत काम का नतीज़ा हक़ीक़त में भयानक होता है।
पता नहीं किस बात का ग़ुरूर है उसको,
शायद हम ज़रूरत से ज़्यादा ईज़्ज़त देनें लगे होंगे।
तमाम उम्र हम लड़ते रहे कि जीत जाएँगे,
किसी नें मुस्कुराकर सबकुछ छीन लिया है।
कुछ अजीब चीज़ें हैं तो मज़ा है जिंदगी में,
वरना तो लोग ऊब जाते हैं एक तरह के खानें तक से।
उस दौर का इंतज़ार जल्द ही पूरा होगा लगता है,
जब शराफ़त बेवकूफ़ी का समानार्थी माना जाएगा।
एक तो शिक़ायत भी हमीं से है,
ऊपर से करना भी हमीं से उफ़्फ़ ये इश्क़।
एक ही बार में सब कुछ लूट लिया गया पर अच्छा है
इश्क़ कहाँ दुनियाँ में रोज़ रोज़ होता हैं।
यूँ आसानीं से क्या इश्क़वालों की बात करते हो,
चट्टान टूट जाए तो मज़ा सिर्फ़ देखनें वालों को ही आता है।
हर क़िस्म से दुआ माँगी रहम हो जानें की,
मेरी क़िस्मत में हुनर है दौलत शायद अभी नहीं।
कोई नया खिलाड़ी जान पड़ता है,
सुना है इश्क़ मुक़म्मल होनें की बातें करता है।
आओ इस भीड़ से निकल चले,
ये बस्ती अब ज़िन्दा लाशों की ढेर सी जान पड़ती है।
कुछ तो वापस नहीं आते हैं क़यामत तक भी,
हमनें क्या बेवज़ह उम्मीद लगाई उनकी।
टहल आए हैं हम उस बाग के पीपल के पीछे से,
जहाँ बचपन की सौ यादों को दफनाए आए थे।
समझदारी नहीं आदमीं को बोलनें की गर,
सभी डिग्री वग़ैरह कागज़ के टुकड़ों से बदतर है।
जिंदगी भी आजकल जुदा जुदा सी लगती है,
साँस भी लूँ तो कमबख़्त जख़्मों को हवा लगती है।
शक से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते,
कसूर हर बार गलतियों का नहीं होता।
लफ़्ज़ थे कुछ अधूरे अधूरे से नीद भी अधूरी थी,
आ गये थे याद तुम यूं ही फिर रात भी कहाँ पूरी थी।
हमारी दिल्लगी शायद उनकेदिल पे भारी है,
वो चल दिए हंसकर पर यहां बरसात जारी है।
यहाँ सब के पास ज़रूरत के बस थोड़ा कम है,
कहीं एक रोटी कम है तो कहीं बंगला।
यूँ मुलाक़ात के दौरान कुछ बातें हो नहीं पातीं,
समझ नहीं आता कि दीदार करें या बात।
तुम्हें हक़ है हमारी ज़िंदगी में हर एक काम का,
सुनो तुम हमें छोड़कर सब कुछ मांग लो।
मुद्दतो बाद लौटे हैं तेरे शहर में,
ईक तुझे छोड़ और तो कुछ बदला नहीं।
जब कहीं दिन भी बरस सा बोझिल होए,
तब मेरे हक़ में मेरे यार तुम दुआ करना।
उधार माँगकर शराब पी है आज,
सुना है मय इंसान मार देती है इंसान के अंदर का।
तुमको मालूम नहीं होगी हक़ीक़त लेक़िन,
हमनें आँखों में एक अलग तुमको देखा है।
जिस जगह किसी एक नें ज़ख़्म दे दिया,
इत्तेफ़ाक़न हर एक नें वहीं नमक रगड़ा।
अब कहाँ दुनियाँ में इत्तेफ़ाक़ होते हैं,
अब इश्क़ भी सुना है गोरे रंग से होता है।
अजीबोगरीब हैं ये फैसले तक़दीर के,
मर जानें के बाद भी कभी कभी मरहम नहीं मिलता।
एक बात तक अधूरी नहीं छोड़ता मैं,
उसके साथ की हर शाम मुझे मुक़म्मल सी लगती है।
बड़े लोग हैं मोहब्बत समझते नहीं शायद,
छोटे लोग मर जाते रहे हैं इश्क़ की दुहाई देकर।
याद क्यों रखेंगे लोग आपको मौत के बाद,
ये सोचकर भी कई बार काम करनें चाहिए।
रास्तों का कुसूर नहीं इस सफर में,
हमनें में कम बेवकूफियाँ नहीं की हैं।
ये दिल कम्बखत मानता नही है आख़िर,
हर बार उसकी झूठी बातो में फस ही जाता है।
तुमसे कहनें आया तो था,
पर देखा तुम भी अकेले उदास बैठे थे।
हक़ से ग़लती बतानें की आदत है उन्हें,
सब कहते हैं मैनें उन्हें छूट ज़्यादा दे दी है।
उन बेग़ैरत आईनों से हमें नफ़रत है,
जो उन्हें मेरे साथ दिखा नहीं सकते।
बदल तो गए हैं मौसम भी आजकल,
न बदलनें वाले पत्थर भी तोड़ दिए जाते हैं।
ग़ुरूर उनको भी था कि बहुत ऊँचे लोग हैं,
जिनको मौत नें भी रहम की आँख से न देखा।
तुम्हारी जैसी दिखनें वाली हर शक़्ल पसन्द आती है मुझे,
तुम क्यों नहीं समझते कि तुमसे इश्क़ है हमें।
सल्तनत मेरे सरकार की मेरे दिल में हैं,
राज नहीं हुक़ूमत है उनकी वहाँ पर।
उन्हें शुक्र नहीं करना कि ज़िन्दगी है,
एक हम हैं जिसे चाहिए ही नहीं ये बेग़ैरत ज़िन्दगी।
क्या ग़ज़ब की कोशिश की गई मुझे तोड़नें के लिए,
मैं सच में कायल हो गया इंतेजाम और मेहनत देखकर।
जब से आए हैं हैरान परेशान रहते हैं,
मेरा गाँव ही बेहतर था गर कमाई का ज़रिया होता।
नज़रें फेर लेते रहे हैं ओढ़नी खिसकनें पर,
और इस शहर में ये देखकर हमें गंवार कहा गया।
क्यों न बाक़ी रही लोगों में आग,
सबकी सिर्फ़ अपनीं अपनीं ही पड़ी क्यों है।
कहीं मेरे ज़ख्मों को वो देख न ले,
इसी लिए उसे लहू नहीं रंग का नाम दे दिया।
कब मैनें किसी ग़ैर की तरफ़दारी कर दी,
एक इसी बात पर शुरू हुआ माज़रा सारा।
इतनें आसान कहाँ होते हैं ज़िन्दगी के सवाल,
तीन घंटों में परीक्षा भी तो कहाँ ख़त्म होती है।
हमनें तेरी आदत नहीं बदली वरना,
इस शहर में जिस्मों की भरमार है शायद।
इतना भी आसान नहीं किसी को माफ़ कर पाना,
बड़ी काबिलियत चाहिए बेहतरीन ज़िन्दगी जीनें के लिए।
मैं सवाल पूछ लेता तो हूँ,
पर डर जाता हूँ कि कहीं बुरा न लग जाए।
सम्भल कर वार करते हैं दुनियाँ वाले,
उन्हें अच्छा भी तो दिखना होता है सामनें से।
वो कोई तोहफ़ा लानें वाला था,
उसनें आख़िरकार तन्हाई हमारे नाम कर दी।
छत नहीं अगर मुक़म्मल एक ही साथ तो चलो,
मैनें देखा कि एक ही आसमान है मेरे और तुम्हारे ऊपर।
खिड़कियों की जगह तकलीफ़ों की ईटें हैं,
कहाँ से आएगी घर में खुशियाँ पैसों वाली।
छोटी ज़िंदगियाँ नहीं बड़ी उम्र चाहिए,
उसे लगता है साँस चले तो आदमीं जिंदा रहता है।
सिसकते हुए लोग हर बार सही नहीं होते,
एक उम्र लग गई मुझे ये बात समझते समझते।
बहुत तरीकों से जोड़कर देख लिया मैनें,
तेरा न होना हर तरीके से मुझे तड़पाएगा ही।
जो एक पल का वक़्त बचा होगा आख़िर में,
उस एक पल में उन्हें देखना चाहूँगा मैं।
क्या ख़ाहिश करें कि वो हमको मिल जाएँ,
उसकी भी हमारी ही तरह शायद कोई ख़ाहिश होगी।
क्या बुरी बात हुई दिल का जल जाना,
दीवाली तो नहीं कि पटाखों की तरह आवाज़ आए।
समझना चाहा मैनें भी दुनियाँ जहान को,
अब मैं समझता हूँ कि ख़ुद को ही समझ लेना काफी है।
सुना है इश्क का बुखार तेज़ी से चढ़ रहा है,
मैं दवा का अविष्कार कर दू।
जब से मस-अला बढ़ा है हिन्दू-मुसलमाँ का,
मेरी बस्ती में इंसान कम ही नज़र आनें लगे हैं।
अब कहाँ यारों जहाँ में रहता हूँ,
गौर से देखो क्या अब भी ज़िंदा लगता हूँ।
गुज़री हुई शाम तक दुबारा नहीं आती,
लोग खाब देखते हैं गुज़रे हुआ वक़्त बदल जानें का।
फिर से बारिश नहीं हुई लेकिन,
मैं भीग जाता हूँ उनकी यादों की छाँव तले।
कुछ तो आदतों की बात कही जाती है,
वरना ये इश्क़ कहाँ भला होता सबको।
पाँव की पायल थी वज़ह मेरे ज़िद की,
अब ये बेड़ियाँ बनकर मुझे तडपानें में लगी हैं।
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखतें हैं,
सब अपने चेहरों पर दोहरा नक़ाब रखते हैं।
क्यों न हर शाम मैं सबकुछ भूल जाऊँ,
हर सुबह नई सी जिंदगी क्यों नहीं मिलती।
अबकी गाँव से जानें का मन नहीं करता,
उन शहरों में सुकून नहीं बस दौड़ है।
छत से बाहर झाँक-कर के जिंदगी देखी,
बहुत दिनों से मैनें आसमाँ नहीं देखा था जो।
तुम लहराती सागर सी मै खालीपन का मारा हूं,
तुम कामयाब शहरी लड़की मैं गलियों का आवारा हूँ।
सोच रहा हूं दिल पर भी गोरिल्ला ग्लास लगवा लूं,
अगर टूटेगा तो ग्लास टूटेगा दिल नहीं ।
समझ में आता है कभी कभार घर का बोझ जब,
सच मानिए रूह काँप जाती है कुछ ख़यालों से।
इश्क़ भूल कर भी मत करना बहुत झमेले है,
इश्क़ किया था हमने भी तभी आज अकेले है ।
कोई ज़मीन पर लाए ख़ुदा को गवाही के लिए,
मेरे नसीब में वो नहीं ये दिल मानता नहीं अब भी।
मैं उलझ गया था बड़ी देर तक,
समझ में आते आते जान निकल गई।
पहुँच जाऊँगा मैं सही रास्ते पर भटकते भटकते,
मैं इश्क़ करता हूँ अपनें मुक़ाम से माशूक़ की तरह।
तस्वीरों से मन लुभा लेना तो ज़रा आसाँ है,
मैं वो हूँ जो लब्ज़ों से रूह में उतर जाता हूँ।
देवता नहीं कोई आज के समय में,
भरोसा करनें से पहले ज़रा सोचिए ज़रूर।
बहुत मगरुर हूं मैं शायद तेरे ख्यालात ऐसे थे,
पर तू क्या समझे मेरी उलझन मेरे हालात कैसे थे।
बेवक्त बेवजह ही बेरुखी तेरी,
फिर भी बेइंतहा चाहने की बेबसी मेरी।
मेरे कान्हा मेरे सरकार इतना न तड़पाओ,
ख़ाबों में ही सही एक बार दरस देनें आओ।
मुझे पाता होता इश्क बेवफ़ा होता है,
तो बेवफाई के दलदल से दूर रहते।
बहुत अर्ज़ियाँ डाल चुका हूँ ख़ुदा तेरी चौखट पर,
एक ही ख़्वाहिश है पर उसी की दुआ करता रहता हूँ।
कुछ दिनों बाद सही उसकी यादें तो जाएँगी ही,
बस उसी कुछ दिन बाद की तलाश में रहता हूँ मैं।
हाँ सच है कि आदमीं रोया नहीं करते,
गर मैनें रो दिया तो कोई गुनाह है क्या।
मन भरा तो नहीं ना भरेगा कभी,
सिर्फ़ अपनाए जानें पर पाबंदी है उधर से भी इधर से भी।
हम तेरे शहर से गुज़रे तो याद आया हमको,
ये वही राह है जिसपर से ईबादत को जाते थे।
गरीब का दिल किसे पसंद आएगा,
आएगा कोई शहजादा और नोट दिखा कर ले जाएगा।
कुछ तो ख़ामोश हैं बेवज़ह ही हम,
वरना ऐसा नहीं कि हमें चिल्लाना नहीं आता।
कुछ सुझाव तो पराए भी दे दिया करते हैं,
अपनों से अक्सर हमें उम्मीद ज़्यादा ही होती है।
जिनकी शायरियों में होती है सिसकियां,
वो शायर नहीं किसी बेवफा के दीवाने होते है।
हादसा भी हो और हँसी भी हो,
ये कमाल बस इश्क़ को आता है।
कौन रोयेगा हमारी खातिर मेरे यार,
हम तो वो है जो खुद पर भी हंस लेते हैं।
पता है लास पानी में क्यू तैरती है,
क्योंकि डूबने के लिए जिंदगी चाहिए।
किसी हंसते हुए लड़के को देखता हूं अगर मैं,
तो यही प्रार्थना करता हूं कि भगवान इसे कभी इश्क ना हो।
ये शहर अब भी अकेला सा महसूस करता है,
इत्तेफ़ाक़न उसे गुज़रे भी लम्बा वक़्त हो चुका।
जिस तरह उसनें सीखाया हमें जीनें का तरीका,
ग़ौर से देखें तो वो भी तालीम बहुत बड़ी दे गया।
तेरी चौखट के सिवा अब तो कोई घर न रहा,
तुझको न माँगा हो बाक़ी ऐसा कोई दर न रहा।
अभी भी बाकी है कुछ उम्मीदें उनसे,
जो मेरी सारी उम्मीदें तोड़कर चले गए।
थोड़ी चिढ़ होनें लगी है कुछ दिनों से मुझको,
किसी का उसको एकटक देखना मुझे अच्छा नहीं लगता।
जब कहीं मौत के आनें की ख़बर आएगी,
पलटकर देखना हम भी कहीं आसपास होंगे।
जो इश्क़ नहीं मानते वे बुरे लोग नहीं हैं,
वे ऐसे लोग हैं जो काट चुके हैं ये रास्ते मुश्किल।
इतनीं भी क्या ज़रूरत है ईबादत में डूब जानें की,
जो ख़ुदा सामनें आ भी जाए तो पहचान न सकें।
एक ही तो हक़ है उनपर मेरा,
मैं एकतरफ़ा मोहब्बत शिद्दत से निभा सकता हूँ।
तुम तो क्या जानते थे हाल हमारा,
हमें तो एक अरसे से पता है की अंजाम क्या होगा।
मैनें रोनें की आवाज़ सुनकर इधर उधर देखा,
आख़िर में पता चला कि मेरे अंदर से आ रही आवाज़ थी वो।
कुछ मसअला रहा होगा मेरी और मेरी खुशियों के बीच,
वरना जिंदगी हर कदम पर ग़मगीन नहीं होता।
चंद लफ़्ज़ों में कहना था कि उनमें बुराई क्या थी,
कुछ समझ नहीं आया तो उन्हें ईमानदार कह दिया।
तुम्हारे चेहरे का मौसम बड़ा सुहाना लगे,
मैं थोडा लुफ्त उठा लू अगर बुरा न लगे।
ए बारिश तू इतना न बरस की वो आ न सके,
और उसके आने के बाद इतना बरस की वो जा न सके।
ख़ैरियत से हो वाह क्या बात है,
चलो अब मान लेते हैं कि किसी को भूल चुके हो।
मैं रो देता ज़रूर पर उसकी ख़ातिर नहीं रोया,
उसनें जताया था एक बार की मैं उसकी ताक़त हूँ।
किसी किनारे की तरह मैं रुक गया हूँ एकदम,
ये वक़्त है कि धारा सा आगे बढ़ता जा रहा
छोड दी हमने हमेशा के लिए उसकी आरजू करना,
जिसे मोहब्बत की कद्र ना हो उसे दुआओ मेक्या मांगना
मुलाक़ात जो ज़रूरी थी अब नहीं होगी,
सुना है ख़ाब टूट जाएँ तो आदमीं जिंदा नहीं रहता।
उसका दामन तो मैं थाम नहीं सका लेकिन,
आख़िरी वादे में अगली बार के लिए कह आया हूँ।
तलब नहीं मुझे की रोज़ इश्क़ करूँ,
मैं आशिक़ों में ऊँचा मुक़ाम रखता हूँ।
उस इश्क़ की आग मेरे दिल को आज भी जलाया करती है,
जुदा हुए तो क्या हुआ ये आँख आज भी उनका इंतज़ार करती है।
सवाल ज़हर का नहीं था वो तो मैं पी गया,
तकलीफ लोगो को तब हुई जब मैं जी गया।
कोशिश न कर सभी को ख़ुश रखने की कुछ लोगों की,
नाराज़गी भी जरूरी है चर्चा में बने रहने के लिए।
तोड़ दो सारी कसमे जो हमने खाई थी,
कभी-कभी रूठो को मना लेने में क्या बुराई है।
हमने कोशिश की वक़्त को बदलने की,
पर क्या पता था ये मेरी ज़िन्दगी ही बदल डालेगा।
खुद ही की ख्वाहिशों से न जाने कितने धोखे किये हमने,
तमाम उम्र अपनों की बेरूखी से कई समझोते किये हमने।
गर कुछ ना भी मिले यहां तो दिल छोटा न करना,
मर जाना पर कभी हालात से समझौता न करना।
तबाह बस्तियां बद्दुआएं देती हैं,
यक़ीन न हो तो जाकर देख आइए।
लफ़्ज़ों की अदला-बदली करके दिल के जज़्बात लिखता हूं,
मैं उससे बात नहीं करता पर उसी की बात लिखता हूं।
मैं इश्क़ इतना खूबसूरत लिखता हूं,
कि मेरे लफ़्ज़ों से इश्क़ को भी इश्क़ हैं।
शायरी बया करना इतना आसान नहीं,
कभी झाक कर देखो मेरे दिल में कितना दर्द निकल रहा है।
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