Sharechat Shayari | शेयरचैट शायरी हिंदी में

Sharechat Shayari: नमस्कार दोस्तो, हमेशा की तरह आज फिर से हाजिर है नए पोस्ट के साथ जिसका टाइटल है शेयरचैट शायरी। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको अच्छी लगेगी और आप इसे अपने दोस्तो के साथ जरूर शेयर करेंगे।

घाव जो भी हैं आप कोशिश न कीजिए जाननें की,

आप भी मुस्कुराते रहिए हमारे साथ साथ।


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अलावा उसके मैं किसी और को चाहता ही नहीं,

वो सुकून है कहाँ इश्क़ विश्क सोचनें लगे आप।


पुराने कपड़े निकाले तो सिलवटों के साथ कुछ पुरानीं यादें भी निकलीं,

सिलवटें तो मिट गईं यादें हैं कि  ज़हन से जाती ही नहीं।


किसी दर से खाली हाँथ लौट कर गर आये नहीं हो,

यक़ीन मानों लाचारी क्या है तुम्हें मालूम ही नहीं है।


मैं लौटा तो नहीं हूँ बाज़ार-ए-इश्क़ में,

पर सुना है उसनें तलाश शुरू कर दी है मेरे जैसे ही किसी औऱ सख्श की।


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कहिए कैसे आना हुआ आपका हमारे ज़हन में,

कोई ज़ख्म देना अभी बाकी रह गया था क्या।


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आँखों के आँसू ग़म के नहीं हैं ये,

ये उस नफ़रत के हैं जो मैं ख़ुद से करता हूँ उसपर भरोसा करने के एवज में।


पहले की बात और थी,

अब नज़रे मिलानें की भी इच्छा नहीं होती।


मैनें हर बात की चाह रख के देख लिया,

अब अच्छा है की उम्मीदें मर गईं हैं सब की सब।


जब से क़ुबूल हुआ है इश्क़ का इकरार मेरा

यक़ीन मानिए पहले से बेहतर है ज़िन्दगी अब की।


शेयरचैट शायरी हिंदी में

तुमसे बिछड़नें के बाद संसय ये है कि,

टूट कर रोये हैं या रो रो कर टूट गए हैं।


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पड़ जाता हूँ मैं बड़े असमंजस में जब वो कुछ बोलती नहीं,

पर जब को बोलती है पागल कर देती है।


पुरानीं बातें जो हैं उन्हें भूल जाया जाए और सीखों को याद रखा जाए,

बस यही है बेहतरीन ज़िन्दग़ी जीनें का राज़।



तुमनें क्यों सोच लिया हमसे दूर रह लोगे,

क्या तुम्हें उतना इश्क़ नहीं हमसे  जितना हमें है तुमसे।


किसी नें हमें बताया ही नहीं की हुनरमंदी रखते हैं हम भी,

बस एक तू ही है जो ज़रा ताऱीफ करता है मेरी।


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बेवज़ह ख़ाक नहीं होते आशियानें यहाँ,

आग लगनें की भी कुछ वज़हें होती हैं।


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मैनें हुश्न देखे तो हैं बहोत सारेपर तुझे देखना ज़रूरी है अब,

सुना है मर जाते हैं लोग  तेरी ज़रा सी मुस्कुराहट पर।


मामले की तह तक पहुँच पाना इतना भी आसान नहीं है,

वो कहते हैंकि  एक फैसला करनें में ख़ुदा को भी मौत तक रुकना पड़ता है।


इन क़िताबों के ख़ामोश लबों को ज़रा ग़ौर से देखिए,

झील की शकल इख़्तियार कर बैठे हैं सैलाब लेकर।


हर कड़ी जोड़कर देखिए शायद ग़लत होनें का भरम ख़त्म हो जाये,

रिस्ते ख़त्म होनें पर ज़रूरी नहीं की ज़िम्मेवार आप ही हों।


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सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है,

इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है।


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तारीखेँ भी अपनें आप में बहोत कुछ कहतीं रहती हैं,

किसी के लिए उनका मतलब कुछ भी नहीं और किसी के लिए शायद ज़िन्दगी हैं वो।


वो हर बात बड़े ग़ौर से सुनता रहा मेरी,

जब मना करनें की कोई वजह न मिली तो कहा की आज दिन अच्छा नहीं है।


शर्तें नहीं रक्खी जातीं हैं यहाँ इश्क़ में यारों,

गर मोहब्बत है तो है वरना मौत भी कम पड़ जाती है ग़म भुलाते भुलाते।


बेचैन से लगता हूँ मैं लोगों को,

उन्हें शायद पता नहीं की सैलाब कोशिश कितनीं भी कर ले उफ़ान रोक नहीं पाता।


दौर-ए-मुलाक़ात में ये वक़्त क्यों जलता रहता है हमसे,

ऐसे तो रोज़ बीतता ही नहीं औऱ वो मिलनें आ जाए तो खुन्नस में भागता है जैसे।


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मुझे मंजूर है हार जाना तेरी अदालत में मालिक,

बस वो एक फ़ैसला तू मेरे हक़ में कर दे।


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ज़रूरी तो नहीं था दूर जाना तुम्हारा,

ख़ैर तड़पाने से अच्छा है मार ही देतेखुशी ख़ुशी।


सुना है शौख है उन्हें भी ज़रा शेर-ओ-शायरी वाला,

वो मान जाए मेरी बात ऐसी कोई शायरी है क्या।


पता नहीं कहाँ से ये  मर्ज़ पाल लिया हमनें,

ये इश्क़ मोहब्बत बडी बवाल चीज़ है यारों।


आख़िर यूँ हुआ कि उस से बिछड़ के हम,

रोए तो बहुत मगर उसे पुकारा नहीं।


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हम उनके होठों पर थे हाथ में नही थे,

पुराने चाय के कप में थे साथ में नही थे।


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मेरे कमरे में तेरे ख्वाहिशों के बयान अब भी मिलते हैं,

तेरी तस्वीर पे मेरे उंगलियों के निशान अब भी मिलते हैं।


यूँ तो शिकायतें और नाराजगी तुझसे ऐ जिन्दगी बेशुमार है,

कहना तो बहुत कुछ है खैर छोड़ आज इतवार है।


दिल्लगी कोई कैसे करें इस ज़माने में,

वक़्त कट जाता रूठने और मनाने में।


शहर हवाले आग के कर आयें है,

बेज़ात इश्क़ कर वो लौट आयें है।


मुर्शीद नादान हूं ना समझ हूं बेकार ही समझो,

दिल रोता है होंठ हंसते हैं फनकार ही समझो।


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पलकों पे लेके बोझ कहाँ तक फिरूं,

ऐ ख्वाब बता तेरा में क्या करूँ।


उसी दिन से पूजता हूं तुझे,

जब लगा तू मेरा हो न पायेगा।


कहीं पर गम कहीं सरगम ये कुदरत के ही तो नज़ारे हैं,

प्यासे तो वो भी रह जाते हैं घर जिनके दरिया किनारे हैं।


न जाने कोन सी शिकायतों का हम शिकार हो गए,

जितना दिल साफ़ रखा उतना गुनहगार हो गए।


खामोशिया भी बहुत कुछ कहती है,

कान लगाकर नही दिल लगाकर सुनना पड़ता है।


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सब कुछ गवां कर फकीरी मिलती है,

बड़ी मुश्किल से ये सादगी मिलती है।


मुस्कुराहट तबस्सुम हँसी कहकहे,

सब के सब खो गए क्योंकि हम बड़े हो गए।


तू रूठा-रूठा सा लगता है कोई तरक़ीब बता मनाने की,

मैं ज़िन्दगी गिरवी रख दूंगी तू क़ीमत बता मुस्कुराने की।


इश्क ‘महसूस’ करना भी इबादत से कम नहीं,

ज़रा बताइये ‘छू कर’ खुदा को किसने देखा है।


कितना चालाक है वो यार-ए-सितमगर देखो,

उस ने तोहफ़े में घड़ी दी है मगर वक़्त नहीं।


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तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें,

हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया।


यूँ हीं अचानक आ जाओ कभी,

दिल के दौरे की तरह।


यूं तो हम लोग बुलाने पर भी कम बोलते है,

पर जहाँ कोई नहीं बोलता, हम बोलते है।


दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए,

जब तक न साँस टूटे जिए जाना चाहिए।


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अरसे बीते तेरे इश्क में लिखते लिखते,

दो लफ्ज़ तू कभी मेरे सब्र पर लिख दे।


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मेरे इश्क़ की ना सही मेरी गजलो की तो दाद दे,

हार लफ्ज में है जिक्र तेरा तू इनका तो जवाब दे।


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