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क्या खूब मजबूरी है,
गमले में लगे पेड़ों की,
हरा भी रहना है,
और बढ़ना भी नहीं।
तू रूठी रूठी सी लगती है,
कोई तरकीब बता मनाने की,
मैं ज़िन्दगी गिरवी रख दूंगा,
तू क़ीमत तो बता मुस्कुराने की।
इजहार-ऐ-इश्क महफिल में,
आँखों से बयाँ हो रहा था,
कैसे बचाते दिल को,
जब कातिल से ही इश्क हो रहा था।
Gulzar shayari in hindi
हसरतें कुछ और है,
वक्त की इल्तजा कुछ और है,
कौन जी सका है ज़िन्दगी अपने मुताबिक,
दिल चाहता कुछ और है होता कुछ और है।
ख्वाहिशो ने ही भटकाये है,
जिंदगी के रास्ते।
वरना रूह तो उतरी थी ज़मीं पे,
मँजिल का पता लेकर।
रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई,
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई,
इक बार तो ख़ुद मौत भी घबरा गई होगी,
यूँ मौत को सीने से लगाता नहीं कोई।
हम निगाहें जिधर भी घुमाते रहें,
तेरी यादों के मंज़र ही आते रहें,
जिस घड़ी ख़त्म मेरी कहानी हुई,
तालियाँ लोग रो कर बजाते रहें ।
कसूर तो था इन निगाहों का,
जो चुपके से उनका दीदार कर बैठी,
हमने तो खामोश रहने की ठानी थी,
पर बेवफा जुबान इज़हार कर बैठी।
तबाह हूँ तेरे प्यार मे,
तुझे दूसरों का ख्याल है,
कुछ मेरे मसले पर भी गौर कर,
यहाँ तो जिन्दगी का सवाल है।
मंज़िल तो तेरी यही थी,
ज़िन्दगी बीत गई तुझे यहां आते आते,
क्या मिला मतलबी ज़माने से,
अपनो ने ही जला दिया तुझे जाते जाते।
नज़ाक़त और ग़ुरूर,
होना चाहिये इश्क़ में,
एक तरफ़ा ही सही,
पर सुरूर होना चाहिए इश्क़ में।
याद है मुझे मेरी हर एक गलती,
एक तो मोहब्बत कर ली,
दुसरी तुमसे कर ली,
तीसरी बेपनाह कर ली।
ए बारिश, ज़रा थम के बरस,
जब आ जाए वो, तो जम के बरस,
पहले न बरस, कि वो आ न सकें,
फिर इतना बरस, कि वो जा न सकें।
हर फूल को रात की रानी नही कहते,
हर किसी से दिल की कहानी नही कहते,
उनकी आँखों की नमी से समझ लिया करो,
हर बात आशिक़ जुबानी नही कहते।
ये आईने क्या देंगे,
तेरी शख्सियत की खबर,
कभी मेरी आँखो से आ के पूछ,
कितनी लाजवाब है तु।
हसीन आँखों को पढ़ने का,
अब भी शौक़ है मुझको,
मोहब्बत में उजड़ कर भी,
मेरी आदत नहीं बदली।
अब बंदिशें हैं चाँद पर, हम रात रोके बैठे हैं,
बस नज़रें ही अब कह रहीं, हर बात रोके बैठे हैं,
धड़कनें भी शांत हैं, जज़्बात रोके बैठे हैं,
मुस्कुराती आँखों से, बरसात रोके बैठे हैं।
मुकद्दर में लिखी कोई बात हो तुम,
जैसे तकदीर में लिखा कोई ख्वाब हो तुम,
करके प्यार तुम्हें ये महसूस हुआ,
जैसे सदियों से मेरे साथ हो तुम।
Gulzar shayari in hindi
गाँव में सब कुछ ही अपना था,
तेरे लिए शहर में किराएदार हुए बैठे हैं,
कहाँ ख्याल रहता है हमे आजकल अपना,
ईद कल थी और हम आज तैय्यार हुए बैठे हैं।
अब मत खोलना,
मेरी जिंदगी की पुरानी किताबों को,
जो था वो मैं रहा नहीं,
जो हूँ वो किसी को पता नहीं।
मेरे वजूद में तू यारा,
कुछ इस कदर है समाया,
चांदनी मुझ पर गिरती है,
ज़मीं पे आता है तेरा साया।
जब याद आती है मुस्कुरा लेते हैं,
कुछ पल हर गम भुला देते हैं,
कैसे भीग सकती हैं उनकी पलकें,
उनके हिस्से के आंसू जो हम बहा लेते हैं।
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